हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, आयतुल्लाह सैयद मौहम्मद तक़वी बास्ट्वी सन तेरह सौ उंचास हिजरी में बासटा ज़िला बिजनौर में पैदा हुए । आप के वालिदे मोहतरम मौलाना सय्यद सगीर हसन तक़वी थे ।
गुर्रतुल ओलमा, जनाब, सर्ताजुल ओलमा और अबूज़रे ज़मान आप के मशहूर अल्क़ाब हैं । जनाब की ज़िंदगी में फ़ुज़ूल ख़र्ची नामी चीज़ दिखाई नहीं देती बल्के आप इंतेहाई दर्जा परहेज़ फ़रमाते थे ।
सैयद मौहम्मद साहब आलिमे बा अमल, मुत्तक़ी, परहेज़गार और एक अच्छे शाइर थे । आप का ख़ानदान इल्मो फ़ज़्ल में मारूफ़ था । जनाब के वालिद भी एक आलिमे बा अमल थे ।
यही वजह है के आप ने इब्तेदाई तालीम अपने ख़ानवादे से ही हासिल की और अपने वालिदे मोहतरम की ख़िदमत में ज़ानुए अदब तेह किए नीज़ सात साल की उम्र में क़ुरआन मजीद की तालीम मुकम्मल की ।
(तफ़सील के लिए मुराजेआ कीजे: नुजूमुल हिदाया, जिल्द तीन, सफ़्हा एक सौ बयासी)
इब्तेदाई तालीम के बाद सन तेरह सौ बासठ हिजरी में मदरसा ए बाबुल इल्म नौगावाँ का रुख़ किया, वहाँ रह कर चार साल तक सुल्तानुल वाएज़ीन अल्लामा आक़ा हैदर और आयतुल्लाह सिब्ते नबी की ख़िदमत में ज़ानुए अदब तेह किए । फिर मदरसा ए नाज़िमिया लखनऊ के लिए आज़िमे सफ़र हुए, वहाँ रह कर बुज़ुर्ग और जय्यद ओलमाए आलाम की ख़िदमत में ज़ानुए अदब तेह किए मसलन: मौलाना अय्यूब हुसैन, ताजुल ओलमा सैयद मौहम्मद ज़की, मुफ़्ती सैयद अहमद अली शूश्तरी और मौलाना रसूल अहमद गोपालपुरी वगेरा ।
सन उन्नीस सौ इक्कियावन ईस्वी में नजफ़े अशरफ़(इराक़) के हौज़े की जानिब गामज़न हुए और ज़माने के मशहूरो मारूफ़ फ़ोक़हा की ख़िदमत में रह कर कस्बे फैज़ किया जिन में से आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद मोहसिनुल हकीम, आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अबुल क़ासिम मूसवी ख़ूई, आयतुल्लाहिल उज़्मा असदुल्लाह मदनी तब्रेज़ी, उस्ताद मुदर्रिस अफ़ग़ानी, आयतुल्लाह हैदर अब्बास और उस्ताद अश्कूरी वगेरा के अस्माए गिरामी क़ाबिले ज़िक्र हैं ।
सैयद मौहम्मद साहब नजफ़े अशरफ़ में तालीम हासिल करने के साथ साथ मदरसा ए ईर्वानी में तदरीस के फ़राइज़ भी अंजाम देते रहे क्योंके आप को फ़िक़्हो उसूल में बहुत महारत हासिल थी, तुल्लाब की कसीर तादाद आप के दर्स में शिरकत करती थी । उस दौरान जनाब हर शबे जुमा नजफ़े अशरफ़ से पैदल चल कर कर्बला की ज़ियारत के लिए तशरीफ़ ले जाते थे ।
चौंतीस साल की उम्र में जनाब को हौज़ा ए इल्मिया नजफ़े अशरफ़ के चार असातेज़ा ने इज्तेहाद के इजाज़े मरहमत फ़रमाए: (१)आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद मोहसिनुल हकीम, (२)आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद हुसैन बुरोजर्दी, (३)आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद बाक़िरुस सद्र, (४)आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अबुल क़ासिम मूसवी ख़ूई ।
आप सौलह साल तक नजफ़े अशरफ़ में बेहरे बेकराँ से मुनसलिक रहे और सन उन्नीस सौ सढ़सठ ईस्वी में दर्जा ए इजतेहाद पर फ़ाइज़ होकर नजफ़ से हिंदुस्तान वापस आए ।
मौसूफ़ ने मुम्बई, देहली और गुजरात वगेरा जेसे बड़े बड़े शहरों में दीनी ख़िदमात अंजाम दीं । मदरसा ए बाबुल इल्म नौगावाँ सादात में मुदीरियतो तदरीस के फ़राइज़ को बेनहवे अहसन अंजाम दिया, उस के बाद मदरसा ए मंसबिया मेरठ की मुदीरियतो तदरीस को संभाला और वहाँ भी अपनी लियाक़त का परचम लहरा दिया । अपनी ज़िंदगी के आख़िर में शहरे रामपुर में इमामे जुमा व जमाअत के उनवान से मुंतख़ब किए गए । आप का शुमार अरबी, फ़ारसी और उर्दू के बेहतरीन शोअरा में होता था ।
अबूज़रे ज़मान ने बहुत से शागिर्दों की तरबियत फ़रमाई जिन में से: मौलाना मौहम्मद अली मोहसिन तक़वी, मौलाना अफ़ज़ाल हुसैन जालपुरी, मौलाना आबिद रज़ा तक़वी, मौलाना सैयद नासिर अब्बास फंदेड़वी, मौलाना शायान छौलसी, मौलाना अब्दुल्लाह ज़ैदी फंदेड़वी, मौलाना हसन अख़्तर नौगावीं, मौलाना सैयद मौहम्मद असग़र फंदेड़वी, मौलाना तालिब हुसैन फंदेड़वी, मौलाना शाहनवाज़ हुसैन मेमन, मौलाना डॉक्टर अब्बास रज़ा रिज़वी छौलसी, मौलाना सादिक़ ख़ूई, मौलाना अलक़मी और मौलाना ग़मख़ार हुसैन वगेरा के अस्माए गिरामी क़ाबिले ज़िक्र हैं ।
आयतुल्लाह सैयद मौहम्मद साहब ने मुताअद्दिद किताबें तालीफ़ कीं और मुख़्तलिफ़ तहक़ीक़ें अंजाम दीं, आप ने नहजुल बलाग़ा का मंज़ूम तर्जेमा भी किया जिसका क़ल्मी नुस्ख़ा आप के फ़र्ज़न्दे अरजुमंद “मौलाना सैयद अली रज़ा तक़वी” के पास महफ़ूज़ है । मौलाए काएनात के एक जुमले का मंज़ूम तर्जेमा नमूने के तौर पर इस तरह पैश किया जा सकता है :
दूर फ़ित्नों में रहो ए नोनिहाल - ऊँट के दो साला बच्चे की मिसाल
कोई उसकी पुश्त पे बेठे तो चल सकता नहीं
उस के ख़ाली थन से कुछ भी दूध मिल सकता नहीं
अमरोहा के लुक़मान रज़ा नामी शख़्स ने इमामत का दावा किया तो आयतुल्लाह सैयद मौहम्मद बास्ट्वी ने उस से मुनाज़ेरा किया और उस की किताब “आफ़ताबे आलम” के जवाब में “इंक़ेलाबे आलम” नामी सात जिल्दों पर मुशतमिल किताब तहरीर फ़रमाई जो क़ल्मी सूरत में उन के बेटों के पास मौजूद है । इसी तरह मौलाना अनसार
हुसैन ज़ैदी फंदेड़वी (फ़ाज़िले मशरिक़ियात) के साथ भी एक मुनाज़ेरा हुआ जो तीन दिन तक जारी रहा, यह मुनाज़ेरा वहदानियते ख़ुदा के उनवान से था । आख़िर कार अबूज़रे ज़मान ने अनसार साहब को क़ाने कर दिया, इस मौज़ू पर मौलाना अनसार साहब ने “तदब्बुर फ़िल क़ुरआन” नामी किताब भी लिखी, जब इस का इल्म सैयद मौहम्मद साहब को हुआ तो बाज़ार में आने से पहले अपनी सारी जमा पूंजी के एवज़ सारी किताबों को ख़रीद लिया ।
नेहवो सर्फ़, फ़साहतो बलागत, फ़िक़हो उसूल, हदीसो तफ़सीर और कलामो अक़ाइद में जनाब की नज़ीर नहीं मिलती । दीनो दयानत और तक़वाओ परहेज़गारी जेसे औसाफ़ आप की ज़ात से ज़ाहिर थे । दौलते दुनिया की तरफ़ कभी भी नज़र नहीं की बल्के हर वक़्त दौलते इल्म की फ़िक्र में रहते थे । जनाब की ज़िंदगी में इल्म और किताब की बहुत ज़ियादा एहमियत थी ।
अगर अख़लाक़ी एतेबार से देखा जाए तो आप की शख़्सियत एसी थी के बिला तफ़रीके मज़हबो मिल्लत लोग आप की ख़िदमत में आते और अपने लिए दुआ की गुज़ारिश करते थे तो जनाब उन को अहलेबेते अतहार अलेहेमूस्सलाम से मंक़ूल दुआओं की तालीम फ़रमाते और उस के हमराह इस्पंद, कलोंजी और सौंठ के इस्तेमाल की ताकीद फ़रमाया करते थे ।
जनाब बास्ट्वी साहब, दीनीओ इजतेमाई प्रोग्रामों में हाज़री देकर उस की मानवियत को बर क़रार रखते थे । फंदेड़ी सादात में इन्हेदामे जननतुल बक़ी के सिसिले से सेह रोज़ा इसलाहीओ एहतेजाजी मजालिस के इजतेमा में इमामे जमाअत के फ़राइज़ भी अंजाम देते थे और प्रोग्राम की सदारत भी आप ही किया करते थे । मोमेनीन, मौसूफ़ से बहुत मोहब्बत करते और वक़तन फ़वक़तन आप की ज़ियारत से मुशर्रफ़ होते रहते थे ।
मौसूफ़ के सारे बेटे अहले इल्मो कमाल हैं और हिंदुस्तान के मुख़्तलिफ़ शहरों में तहरीर, तक़रीर और तदरीस के ज़रीए इशाअते उलूमे मौहममदो आले मौहम्मद में मशगूल हैं जिन के अस्माए गिरामी कुछ इस तरह हैं: मौलाना सैयद हुसैन असग़र, मौलाना सैयद आबिद रज़ा, मौलाना सैयद जाफ़र रज़ा, मौलाना सैयद मूसा रज़ा, मौलाना सैयद अली रज़ा, मौलाना डॉक्टर सैयद तक़ी रज़ा बुरक़ई और मौलाना डॉक्टर सैयद हादी रज़ा (प्रो॰ ए॰एम॰यू॰ अलीगढ़) ।
यह इल्मो अमल का आफ़ताब पच्चीस रबीउल अव्वल सन चौदह सौ अट्ठाईस हिजरी में सरज़मीने रामपुर पर गूरूब हो गया और चाहने वालों की हज़ार आहो बुका के हमराह नवाबीने रामपुर के मक़बरा ए आलिया में सुपुर्दे लहद किया गया । (तफ़सील के लिए मुराजेआ कीजे: अनवारे फ़लक, जिल्द एक, सफ़्हा तेरानवे)
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द३- पेज- १७९ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, ईस्वी।